मल्टीप्लेक्सों ने दर्शकों की कमज़ोर रिस्पॉन्स के कारण "द केरल स्टोरी" की स्क्रीनिंग न करने का फैसला किया: सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार का जवाब

May 16, 2023
Source: https://hindi.livelaw.in/

सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु राज्य में फिल्म के कथित 'शैडो बैन' के खिलाफ विवादास्पद फिल्म 'द केरल स्टोरी' के निर्माताओं द्वारा दायर याचिका में राज्य सरकार ने निर्माताओं के दावों का खंडन करते हुए जवाबी हलफनामा दायर किया। हलफनामा में कहा गया कि उन्होंने जानबूझकर झूठे बयान दिए, जिसका अर्थ है कि तमिलनाडु ने फिल्म के सार्वजनिक प्रदर्शन को रोका है। हलफनामे के अनुसार, हिंदी में फिल्म को तमिलनाडु राज्य के 19 मल्टीप्लेक्स में इसकी रिलीज की तारीख यानी 5 मई 2023 को रिलीज किया गया। इसके अतिरिक्त, राज्य में फिल्म की स्क्रीनिंग पर प्रतिबंध लगाने का कोई आदेश नहीं दिया गया। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत फिल्म के निर्माताओं की भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सभी कदम उठाए हैं। हालांकि, हलफनामे के अनुसार, मल्टीप्लेक्स मालिकों ने खुद 7 मई 2023 से फिल्म की स्क्रीनिंग बंद करने का फैसला "फिल्मी की आलोचना/ जाने-माने अभिनेताओं की कमी/खराब प्रदर्शन/दर्शकों की कमज़ोर रिस्पॉन्स" को देखते हुए लिया। हलफनामे में कहा गया कि मल्टीप्लेक्स मालिकों के फैसलों और फिल्म की स्क्रीनिंग पर राज्य का कोई नियंत्रण नहीं है। हलफनामे में दोहराया गया कि याचिकाकर्ता उक्त याचिका की आड़ में अपनी फिल्म के लिए प्रचार हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं और अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं। "राज्य खुफिया विभाग ने जिलों में पुलिस अधीक्षकों और शहरों में पुलिस आयुक्तों को राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर कड़ी निगरानी रखने और इसके रखरखाव को सुनिश्चित करने के लिए अलर्ट जारी किया है।" यह कहते हुए कि फिल्म की रिलीज को सुविधाजनक बनाने और मल्टीप्लेक्स में थिएटरों के मालिकों को किसी भी संभावित नुकसान को रोकने के लिए ऐसा किया गया, हलफनामे में दोहराया गया कि यह केवल इसलिए है, क्योंकि रिलीज होने के बाद फिल्म की कड़ी आलोचना की गई। फिल्म में दिखाया गया कि "मुस्लिम नफरत करते हैं।" इसीलिए फिल्म की स्क्रीनिंग को मल्टीप्लेक्स के मालिकों ने अपने विवेक से रोक दिया। फिल्म की स्क्रीनिंग पर राज्य के विभिन्न मुस्लिम संगठनों द्वारा 19 स्थानों पर किए गए "प्रदर्शन, आंदोलन और धरना" का उल्लेख करते हुए राज्य ने कहा कि विरोध के बावजूद फिल्म को प्रदर्शित करने के लिए राज्य द्वारा पर्याप्त पुलिस सुरक्षा प्रदान की गई। राज्य ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता प्रचार पाने के प्रयास में "दुर्भावनापूर्ण इरादे" अपनी उक्त कार्य को अंजाम दे रहे हैं और उसी कारण से "झूठे और व्यापक आरोप" लगाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस सप्ताह की शुरुआत में मामले में पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु राज्यों को नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि तमिलनाडु राज्य में प्रदर्शकों ने राज्य के अधिकारियों द्वारा अनौपचारिक संदेश के बाद फिल्म को वापस ले लिया। पिछली सुनवाई में तमिलनाडु राज्य का प्रतिनिधित्व एडिशनल एडवोकेट जनरल अमित आनंद तिवारी ने किया। निर्माता ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को भी चुनौती दी। कोर्ट इस मामले पर 17 मई को विचार करेगी। मामले की पृष्ठभूमि फिल्म ने आरोपों पर विवाद खड़ा कर दिया कि यह धोखाधड़ी से आईएसआईएस में भर्ती की गई महिलाओं की कहानी को चित्रित करते हुए पूरे मुस्लिम समुदाय और केरल राज्य को कलंकित कर रही है। केरल हाईकोर्ट की जस्टिस एन. नागेश और जस्टिस सोफी थॉमस की खंडपीठ ने 5 मई को फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि फिल्म ने केवल इतना कहा है कि यह 'सच्ची घटनाओं से प्रेरित' है और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने फिल्म को सार्वजनिक रूप से देखने के लिए प्रमाणित किया है। खंडपीठ ने फिल्म का ट्रेलर भी देखा और कहा कि इसमें किसी विशेष समुदाय के लिए कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं में से किसी ने भी फिल्म नहीं देखी और निर्माताओं ने डिस्क्लेमर जोड़ा है कि फिल्म घटनाओं का काल्पनिक संस्करण है। हालांकि, हाईकोर्ट ने निर्माता की यह दलील भी दर्ज की कि फिल्म का टीज़र, जिसमें दावा किया गया कि केरल की 32,000 से अधिक महिलाओं को आईएसआईएस में भर्ती किया गया, उसको उनके सोशल मीडिया अकाउंट्स से हटा दिया जाएगा।
 

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